तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
अर्थ: हे शिव शंकर भोलेनाथ आपने ही त्रिपुरासुर (तरकासुर के तीन पुत्रों ने ब्रह्मा की भक्ति कर उनसे तीन अभेद्य पुर मांगे जिस कारण उन्हें more info त्रिपुरासुर कहा गया। शर्त के अनुसार भगवान शिव ने अभिजित नक्षत्र में असंभव रथ पर सवार होकर असंभव बाण चलाकर उनका संहार किया था) के साथ युद्ध कर उनका संहार किया व सब पर अपनी कृपा की। हे भगवन भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने की उनकी प्रतिज्ञा को आपने पूरा किया।
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल shiv chalisa lyricsl नागफनी के॥
बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए, शनि के प्रकोप से बचने हेतु हनुमान चालीसा का पाठ करें
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग मंत्र